ये कैसे दिन? Ye Kaise Din – A Kavita on COVID-19 Lockdown/Self Isolation
ये कैसे दिन?
थम सी गई है जिंदगी।
रुक से गए है पल।
बड़ा बुरा हाल है।
लोगों का आज कल।
कुछ भूखे पेट सो रहे हैं।
कुछ बेरोज़गार हो रहे हैं।
उनका हाल किनसे छिपा है।
जो कंधे पे बच्चों को 400-400 Km ढो रहे हैं।
बच्चे फसे हैं बाहर।
माँ-बाप का है बुरा हाल।
कब ख़त्म होगा लॉक-डाउन ?
किससे करें सवाल?
सड़कें हो गई है वीरान।
कारोबार पड़ा है ठप।
संकट में है वयापार।
कैसे ख़त्म होगा ये सब।
अभी हाल ही कि तो बात है।
हम सब बाहर जा सकते थे।
दोस्तों से मिल कर गप्पें लड़ा सकते थे।
जब चाहे दोस्तों को घर पर बुला सकते थे।
चंद रोज़ में ही बदल गए हैं सारे नज़ाम।
अब घर से बाहर जाना भी हो गया है हराम।
घर में बंद रहना ही है एक बड़ा काम।
मिल जाए समय पर खाना तो लो ऊपर वाले का नाम।
थम सी गई है जिंदगी।
रुक से गए है पल।
बड़ा बुरा हाल है।
लोगों का आज कल।
– शहज़ादा
