वो देश बचाने आईं हैं। (Mahilaon K Liye Kavita)
काविश अज़ीज़ लेनिन एक पत्रकार हैं और लगातार लखनऊ प्रोटेस्ट को रात-रात भर कवर कर रही हैं। उन्होंने उन बेटियों के लिए ये कविता लिखी है जो दिन रात भूल कर संविधान को बचाने की ज़िद किये खुले आसमान के नीचे बैठी हैं।
वो देश बचाने आईं हैं।
जो चूल्हा-चोका करती थीं, इतिहास बनाने आईं हैं।
इस देश की सोई जनता की, वो नींद भागने आईं हैं।
जो थाम के सुई धागों को, कपड़ों को तुम्हारे सितिं थीं।
इस मुल्क के हर एक चिथड़े पर, वो रफू करने आईं हैं।
दर्पण को जो देखा करती थीं, वो सजती और सवरतीं थीं।
श्रृंगार किया डिब्बों में बंद, वो देश सजाने आईं हैं।
तुम शमा कहो या चिराग कहो, किरदार पे उनके दाग़ कहो।
इस देश के हर एक धब्बे की, वो मैल छोड़ने आईं हैं।
कुछ सब्जीबाग़ सजाये हैं, कुछ रोशनबाग में बैठीं हैं।
इस देश की सुखी सड़कों को, वो बाग़ बनाने आईं हैं।
यहाँ अफ़सान हवन में बैठीं हैं, इफ्तार कराती पूजा हैं।
हर धर्म से ऊपर इंशान हैं, ये रीत चलने आईं हैं।
मज़बूत हैं ये मज़लूम नहीं, एहसास से ये महरूम नहीं।
क्या बारिश क्या और कोहरा क्या, मौसम को हराने आईं हैं।
तुम बात हो करते गीता की, कुरआन की सूरह कहते हो।
ये संविधान को दिल में लिए, भारत को बचने आईं हैं।
तुम इनको डंडे मरोगे, हम इनपे केस चलाओगे।
ये देश को सीने में रख कर लाठी को खाने आईं हैं।
महफूज थे जिसकी कोख में तुम, उस औरत से तुम डरते हो।
ताकत भी तुम्हारी उससे है, ये बात जताने आईं हैं।
