वो सुबह कभी तो आएगी। Wo Subah Kabhi To Ayegi
काविश अज़ीज़ लेनिन एक पत्रकार हैं और लगातार लखनऊ प्रोटेस्ट को रात-रात भर कवर कर रही हैं।उन्होंने ये नज़्म लिखी है। सिटिज़न अमेंडमेंट बिल (CAB/CAA) को लेकर पूरे देश मे जो आंदोलन हुए, फिर दंगे हुए उसे लेकर एक नज़्म।
वो सुबह कभी तो आएगी।
वो दिन भी याद है हमको, जब आवाज़ उठाने की खातिर।
सड़कों पर जनता उतरी थी, हक़ बात की खातिर।
कुछ खाकी वर्दी वाले थे,जो सब के मुहाफ़िज़ लगते थे।
पर उनमें भी कुछ जायज़ थे, और कुछ के चेहरे थे शातिर।
इस भीड़ में थे कुछ ऐसे भी, जो भीड़ से थोड़े हटकर थे।
चेहरे थे उनके ढके हुए, आँखों में तीखे नस्तर थे।
हाथों में तेल की बोतल थी, जेबों में छुपाए पत्थर थे।
ना मेरे थे ना तेरे थे, साँपों से भी ये बदतर थे।
कुछ देर तलक बर्दास्त किया, कुत्तों की तरह फिर टूट परे।
फिर औरत क्या और बच्चे क्या, बूढ़े भी इनके भेंट चढ़े।
घंटों जमकर दंगाई की, फिर धीरे धीरे चले गए।
सड़कों पर अपने दहसत की सिग्नेचर कर के चले गए।
मेहनत की एक एक पाई से, बरसों तक जो कुछ जोरा था।
हर चीज़ पड़ी थी आतिश में, दण्डों से सबकुछ तोड़ा था।
अब सन्नाटा था सड़कों पर, गलियों में कोई सोर ना था।
ये सोच के सब बाहर आए, के सहर में कोई चोर न था।
झाँका ताका पूछा जा जा, ये कौन थे जो आए थे ?
जिसमें पे हमारे जख्म दिए, ये अपने थे या पराए थे ?
उलझन की गहरी परतें थी, आँखों में भरे थे कई सवाल।
पर तबतक हुक्म हुआ जारी, कुछ पूछने की ना करना मजाल।
जो दंगा करने आए थे, वो दंगा करके चले गए।
मासूम छुपे थे घर में जो, वो पुलिस के हथ्थे चढ़े गए।
जिसने संविधान का मान रखा, उसको ही बताया दंगाई।
मारा कूटा मशला कुचला, जमकर की हाथापाई।
दस बिस लगाई धाराएं, दंगे के हर एक दोषी पर।
अब लड़ो मुकदमा पढ़ो नोटिसें, दोरो हर दिन पेशी पर।
मैं भी हूँ विटनेस दंगे की, मैंने भी सब कुछ देखा था।
पर पकड़े जाने वालों का, कुछ अलग ही लेखा-जोखा था।
कुछ जागरूक सोशल वर्कर थे, कुछ कर्मचारी नयायालय के।
कुछ बच्चे थे स्कूल के, कुछ टीचर थे विधयालय के।
कुछ बतियाँ भी आई थी, कुछ पत्रकार भी जेल गए।
ये हिटलर की औलादें तो, गज़ब खेल ही खेल गए।
आवाज़ उठाने वालो की, आवाज़ कुचल दी जाती है।
दिन रात डराया जाता है, धमकी भी दी जाती है।
ये खौफ की बदली के शाए, कब आसमान को छोड़ेंगे ?
कब अमन की बूंदें बरसेगी, कब चैन से हम सब सोएंगे ?
विसवास पे साँसें चलती है, ये रात कभी तो जाएगी।
उम्मीद में आँखें जिन्दा हैं, वो सुबह कभी तो आएगी।
