वो है मेरी माँ (Wo hai meri Maa) – A Kavita on Mother
वो है मेरी माँ
मेरा पेट अच्छे से भरे,
खुद भूखा पेट सो जाती थी।
मेरा गर्मी से नींद ना खुल जाए,
उठ-उठ कर पंखे चलाती थी।
जब कभी सिर दर्द होता,
मेरे पूरे सिर को दबाती थी।
वो है मेरी माँ,
उन्हें मैं कैसे छोड़ दूं?
जब मुझे नींद नहीं आती,
देर तक कहानियों सुनाती थी।
कभी तबियत जो बिगड़ जाए मेरी,
सारी रात बैठ कर बिताती थी।
जब मैं अकेला महसूस करता,
गोद में रख कर मेरा सिर मेरे बालो को सहलाती थी।
वो है मेरी माँ,
उन्हें मैं कैसे छोड़ दूं?
उसके कपड़े फटे होते थे,
वो मुझे नए कपड़े दिलाती थी।
बाजार में मुझे कोई खिलोना जो पसंद आ जाये,
वो मेरे लिए चुपके से ले आती थी।
मैं रोजाना इतने कपड़े गंदे करता,
वो बाल्टी भर-भर कर मेरे कपड़े धूल जाती थी।
वो है मेरी माँ,
उन्हें मैं कैसे छोड़ दूं?
उन्हें मालूम था मैं कुछ खास नहीं हूं,
फिर भी वो मुझे “हीरा” कह के बुलाती थी।
जब मुझमें आत्मविश्वास की कमी होती,
अपने बातो से मेरा होशला बढ़ा जाती थी।
जब मैं किसी खास काम से बाहर निकलता,
वो मुझे दही-चीनी खिलाती थी।
वो है मेरी माँ,
उन्हें मैं कैसे छोड़ दूं?
— शहज़ादा
